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अगर एक दिन इंटरनेट बंद हो जाए तो!

इंटरनेट से दूर रहने का जीवन पर क्या असर होगा, इसके बारे में अमरीका के स्टैनफ़ोर्ड विश्वविद्यालय के जेफ़ हैनकॉक ने अपने छात्रों के अनुभव जानने की कोशिश की है.

2008 के पहले उनका जो अनुभव रहा वो एक साल बाद 2009 में पूरी तरह बदल गया.

2009 में पूरी क्लास ने उनके इस सवाल का जवाब एक सुर में बताने से मना कर दिया और कहा कि ये अनुचित और असंभव टास्क है.

हैनकॉक ऑनलाइन कम्युनिकेशन से जुड़े मनोवैज्ञानिक और सामाजिक प्रक्रिया का अध्ययन करते हैं.
  • छात्रों का तर्क था कि अगर वे ऑफलाइन हो जाएं तो उनके काम पर बुरा असर पड़ता है, सोशल लाइफ प्रभावित होती है और दोस्तों और परिवार को चिंता होती है कि कहीं उनके साथ कुछ अशुभ तो नहीं घटा.
हैनकॉक कहते हैं, ''अध्ययन का समय 2009 था. आज मोबाइल जिस पैमाने पर इस्तेमाल हो रहा है, मुझे लगता है कि आज ऐसा पूछने पर छात्र यूनिवर्सिटी के प्रेसिडेंट को मेरी शिकायत कर सकते हैं.''

ऑनलाइन आबादी

1995 में एक प्रतिशत से भी कम लोग ऑनलाइन थे. पश्चिमी देशों में इसका अधिक प्रयोग होता था. तब इंटरनेट को लेकर लोगों में एक उत्सुकता थी.
  • आज 20 साल बाद साढ़े तीन अरब से अधिक लोगों के पास इंटरनेट कनेक्शन है. कहा जा सकता है कि धरती की आधी आबादी ऑनलाइन है. ये संख्या दिनों-दिन बढ़ रही है. हर एक पल में 10 लोग इंटरनेट से जुड़ रहे हैं.

प्यू रिसर्च सेंटर के अनुसार अमरीका में 73 प्रतिशत लोग कम से कम रोज़ ही इंटरनेट का इस्तेमाल करते हैं जबकि लंदन में 2016 के एक सर्वे के मुताबिक़ 90 प्रतिशत लोगों ने पिछले तीन महीनों में इंटरनेट का इस्तेमाल किया.
  • इंटरनेट को देश के भीतर और दो देशों के बीच भी कई तरीकों से बाधित किया जा सकता है.

साइबर हमला
साइबर हमला इंटरनेट का प्रयोग करने वालों के लिए एक बड़ा खतरा है. ग़लत मकसद से काम करने वाले हैकर इंटरनेट यूजर्स को बड़े पैमाने पर नुकसान पहुंचा सकते हैं. इसमें इंटरनेट एक्सेस से लेकर निजी जानकारियों को चुराए जाने का ख़तरा शामिल है.

अगर दो महादेशों के बीच डीप-सी केबल (दो देशों के बीच सागर से होते हुए तारों की मदद से इंटरनेट कनेक्शन) को काट दिया जाए तो इंटरनेट ट्रैफिक पर बुरा असर पड़ता है.

2008 में मध्यपूर्व, भारत और दक्षिणपूर्वी एशिया के बीच अलग-अलग तीन मौकों पर सबमरीन केबल या तो काट दिए गए या इन्हें बाधित किया गया.

इंटरनेट पर सरकारी पाबंदी
कई बार सरकार खुद देश के भीतर इंटरनेट पर पाबंदी लगा देती है. मिस्र ने 2011 में अरब स्प्रिंग के दौरान प्रदर्शनकारियों के आपसी संपर्क में बाधा डालने के लिए इंटरनेट कनेक्शन काट दिए थे.

तुर्की और ईरान में भी विरोध प्रदर्शनों के दौरान इंटरनेट कनेक्शन काट दिए गए. इसी तरह अफ़वाह है कि चीन ने अपने यहां इंटरनेट पर खुद ही रोक लगाई है.

इसी तरह, अमरीका के सीनेटर ने साइबर हमले से देश को दूर रखने के लिए इंटरनेट कनेक्शन काटने की वकालत की.

देश जितना ही विकसित और बड़ा होता है वहां इंटरनेट को पूरी तरह बंद करना उतना ही मुश्किल होता है क्योंकि देश के भीतर और बाहर भी नेटवर्क के कई कनेक्शन होते हैं.

अंतरिक्ष गतिविधियों का इंटरनेट कनेक्शन पर सबसे ख़राब असर पड़ता है. सौर तूफान से हमारी तरफ जो तेज़ रोशनी आती है वो हमारे उपग्रह, पावरग्रिड और कंप्यूटर सिस्टम सबको ठप कर देती है.

स्टैनफ़ोर्ड विश्वविद्यालय में न्यूरोसाइंटिस्ट डेविड इगलमैन कहते हैं, "जो काम बम और आतंकवाद नहीं कर सकता वो काम सौर प्रणाली में आई बाधा कर सकती है."

इंटरनेट कुछ समय के लिए बंद कर दिया जाए तो इसके अलग-अलग क्षेत्रों में अलग असर होते हैं.

अर्थव्यवस्था पर इंटरनेट के कुछ दिन के लिए बंद होने का ज्यादा बुरा असर होने की संभावना नहीं है.
 
इंटरनेट ठप्प पड़ने के असर

2008 में अमरीका में होमलैंड सिक्योरिटी विभाग ने कोपेनहेगन यूनिवर्सिटी के स्टीन लोमबोर्ग को इंटरनेट ठप पड़ने के असर के बारे में पता लगाने को कहा.

बोर्ग और उनके साथियों ने अमरीका में 2000 के बाद कंप्यूटर और इंटरनेट में आई ख़राबी के आर्थिक असर का पता लगाया. 20 कंपनियों की वित्तीय तिमाही रिपोर्ट खंगालने पर पता चला कि इसका वित्तीय नतीजों पर मामूली असर रहा. ख़ासकर उस इंटरनेट गड़बड़ी का जो चार दिनों से अधिक नहीं रही. जबकि पहले इन 20 कंपनियों ने इंटरनेट कनेक्शन बाधित होने के बाद इसके गहरे असर की बात कही थी.
  • इसका निष्कर्ष ये निकाला गया कि कुछ दिनों के लिए इंटरनेट बंद होने से लोगों के काम पर ज़्यादा बुरा असर नहीं पड़ा. वे काम में बस थोड़ा पीछे रह गए.

लोमबोर्ग बताते हैं, "लोगों ने वो सारे काम किए जो वो इंटरनेट रहने पर किया करते थे. बस फ़र्क ये था कि ये काम उन्होंने दो-तीन दिनों बाद किया."

कुई मामलों में कुछ समय के लिए इंटरनेट बंद होने से लोगों की कार्यक्षमता बढ़ी.
 
पांच घंटे से अधिक बंद हो तो क्या होगा?

एक दूसरे अध्ययन में लोमबोर्ग और उनके सहकर्मियों ने पता लगाने की कोशिश की कि जब इंटरनेट पांच या इससे अधिक घंटे के लिए बंद हो जाए तो क्या होगा.
  • उन्होंने पाया कि कर्मचारियों ने हाथ पर हाथ रख कर बैठने की बजाए वो काम किया जो वे आमतौर पर नहीं करते थे. उन्होंने पेपरवर्क पर ध्यान दिया. इसका कारोबार पर अच्छा असर हुआ.

वे कहते हैं, "हम तब से मजाक में कहने लगे- अगर सारी कंपनियां हर महीने कुछ घंटों के लिए अपने कंप्यूटर बंद कर दें और लोग टाल दिए गए कामों को करें तो इसका कंपनी को फ़ायदा होगा."


हवाई सफर पर असर

इंटरनेट के एक दिन ना होने से सफ़र पर ज्यादा असर होने की संभावना नहीं है.

हवाई जहाज, ट्रेन, बस इंटरनेट के बिना भी यात्रियों को उनके सफ़र और मंजिल तक ले जाते रहेंगे. लेकिन जब इंटरनेट कनेक्शन एक दिन से ज़्यादा समय के लिए कट जाए तो इसका यात्रा से जुड़े कारोबार पर अच्छा असर नहीं होगा.


छोटे कारोबारियों और शारीरिक श्रम करने वालों पर इंटरनेट कनेक्शन बंद पड़ने का बुरा असर पड़ेगा. 1998 में अमरीका में पांच करोड़ पेजर्स का 90 फीसदी काम ठप पड़ गया क्योंकि सैटेलाइट ने काम करना बंद कर दिया था.

बड़े पेशेवर और प्रबंधन से जुड़े लोगों पर इसका कोई ख़ास असर नहीं हुआ. डट्टन कहते हैं, "कुछ समय के लिए इंटरनेट न हो तो ये उनके लिए राहत की तरह था."
 
मनोवैज्ञानिक असर

बच्चों को डे-केयर में छोड़ने वाली अकेली मांओं को भी परेशानी महसूस होगी.

डट्टन ने लॉस एंजेलेस में 250 अख़बारों का सर्वे किया और पाया कि इंटरनेट बंद होने से आप कितने प्रभावित होते हैं यह आपके सामाजिक-आर्थिक स्थिति पर निर्भर करता है.

इंटरनेट अगर बंद हो जाए तो इसका बुरा मनोवैज्ञानिक असर होगा. लोगों में बेचैनी बढ़ेगी और वे सामाजिक रूप से अलग-थलग पड़ जाएंगे.

हैनकॉक कहते हैं, "इंटरनेट की मदद से हम एक दूसरे से संवाद कर सकते हैं. इसके जरिए हम कहीं भी, कभी भी और किसी से भी बातचीत कर सकते हैं, दोस्तों-रिश्तेदारों से संपर्क में रह सकते हैं."

बोर्ग भी उनका समर्थन करते हैं. वे बताते हैं, "एक बार मेरा स्मार्टफोन घर पर छूट गया. मुझे इसके बगैर बिना कपड़ों जैसा महसूस हुआ. अचानक ख़्याल आया कि मैं कहां जा रहा हूं, मुझे ठीक से पता नहीं. क्या होगा अगर मेरी कार अचानक ख़राब हो जाए. मैं तो किसी को फोन करके मदद भी नहीं मांग पाऊंगा."

इतिहास भी इंटरनेट के इस मनोवैज्ञानिक असर को सही ठहराता है. एक बार 1975 में न्यूयॉर्क टेलीफोन कंपनी की बिजली कटने से मैनहटन के 300 ब्लॉक में 23 दिनों के लिए अंधेरा छाया रहा. जब स्थिति सामान्य हुई तो तुरंत 190 लोगों का एक दल स्थिति का जायज़ा लेने के लिए भेजा गया. पाया गया कि पांच में से चार लोगों ने अपने फ़ोन की कमी महसूस की. वे अपने दोस्तों और परिवारवालों से संपर्क नहीं कर पाए.

दो-तिहाई लोगों ने माना कि सेवा ठप पड़ने से उन्हें कई दिक्कतें हुई और उन्होंने ख़ुद को अलग-थलग महसूस किया. तो तीन-चौथाई का कहना था कि जब सेवाएं फिर से शुरू हुईं तब उनका आत्मविश्वास लौटा.


आमतौर पर इंटरनेट पर लोगों को एक-दूसरे से दूर करने का आरोप लगाया जाता है. लेकिन डट्टन के मुताबिक, "लोगों का मानना है कि इंटरनेट नहीं होता तो लोग अधिक सोशल होते, दोस्तों और रिश्तेदारों से ज़्यादा मिलते. मुझे ऐसा नहीं लगता."

वे कहते हैं, "दरअसल इंटरनेट का इस्तेमाल करने वाले अधिकांश लोग उन लोगों से अधिक सोशल होते हैं जो इंटरनेट का इस्तेमाल नहीं करते."

इंटरनेट कनेक्शन कटने से कुछ खास परिस्थितियों में लोगों के बीच मेल-जोल बढ़ेगा. जैसे कि दफ्तर में सहकर्मी एक-दूसरे को ईमेल भेजने की जगह बातचीत करेंगे. लेकिन कुल मिलाकर इसका बुरा असर होगा.

कोपेनहेगन विश्वविद्यालय की स्टीन लोमबॉर्ग कहती हैं कि अधिकांश लोगों के लिए इसके बिना एक दिन भी जीने की कल्पना नहीं की जा सकती.

 स्रोत और उद्धरण
http://www.bbc.com/hindi/science-39048708

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