जब हमें कम्प्यूटर पर दिखाई दे रही किसी वस्तु को छूना या उसे चुनना होता है तो ऐसा हम माउस की मदद से करते हैं। माउस को हिलाने से उसके नीचे लगा गोलाकार पहिया स्क्रीन पर दिख रही पेंसिल/तीर (कर्सर) को उपर या नीचे जाने का निर्देश भेजता है। जब हम माउस के उपर लगे बटन को दबाते हैं तो उस वक्त पटल पर तीर जिस वस्तु के उपर होता है वह चुन ली जाती है। जैसे इस पृष्ठ पर दिये हुए किसी कडी तक हमें जाना है तो अपने माउस को हिलाकर तीर को वहाँ तक ले जाना होगा। फिर बटन दबाकर (क्लिक करने) से हम उस कडी को चुनते हैं।
आज माउस के बिना कंप्यूटर पर काम करना असंभव सा लगता है लेकिन कंप्यूटर को अपनी लंबी विकास यात्रा में माउस का साथ बहुत बाद में मिला। माउस से आम लोगों का परिचय 1981 में हुआ जब जीरोक्स स्टार 8010 कंप्यूटर के साथ पहली बार माउस बाजार में आया। हालांकि माउस को आम लोगों के बीच लोकप्रिय बनाने का श्रेय एपल कंपनी को जाता है जिसने 1984 में अपने मैकिन्टोश कंप्यूटर में माउस का प्रयोग शुरू किया। जरा सोचिए, उससे पहले लोग बिना माउस के कैसे काम चलाते होंगे? असल में, पहले कंप्यूटर स्क्रीन पर ग्राफिक्स (चित्र), बटन, मेन्यू आदि नहीं आते थे और उस पर अंकित पाठ सिर्फ दो दिशाओं में चलता था, बाएं से दाएं तथा ऊपर से नीचे। ऐसे में माउस की जरूरत ही महसूस नहीं होती थी।
माउस का आविष्कार स्टैनफोर्ड रिसर्च इन्स्टीट्यूट के डॉ. डगलस सी एन्जेलबर्ट ने 1963 में किया था। उनका माउस लकड़ी का बना था जिसमें धातु का एक पहिया और दो बटन थे। एन्जेलबर्ट ने जब 1967 में माउस के लिए पेटेंट की अर्जी दाखिल की तो उसका बड़ा जटिल सा नाम रखा था- ‘एक्स-वाई पोजीशन इन्डीकेटर फॉर ए डिस्प्ले सिस्टम‘। उन्हें 1970 में पेटेंट मिला। शुरू-शुरू में माउस का नाम रखा गया ‘बग‘ (कीड़ा)। आज कंप्यूटर की भाषा में प्रोग्रामिंग संबंधी गलतियों और वायरसों को ‘बग‘ कहा जाता है।
लेकिन माउस को जल्दी ही ‘बग‘ की बजाए ‘माउस‘ नाम मिल गया। वजह सीधी-सादी थी- माउस की तार किसी चूहे की पूंछ जैसी लगती थी और घुमाने पर वह किसी चूहे के चलने जैसा ही आभास देता था। यह नाम सबको पसंद आया और लोकप्रिय हो गया। आज सिर्फ अंग्रेजी ही नहीं, हिंदी, रूसी, स्पैनिश, जर्मन, इतालवी आदि भाषाओं में भी माउस को ‘माउस‘ ही कहा जाता है।
कीबोर्ड की ही तरह माउस भी एक इनपुट डिवाइस (आगम युक्ति) है जिसका काम कंप्यूटर के प्रोसेसर को संकेत भेजना है। माउस के जरिए हम कंप्यूटर की स्क्रीन पर करसर (टंकण बिंदु) की स्थिति को नियंत्रित कर सकते हैं, बटन और मेन्यू आदि का प्रयोग कर सकते हैं, चित्र बना सकते हैं, ऑडियो-वीडियो फाइलों को संपादित कर सकते हैं, कंप्यूटर गेम खेल सकते हैं और यहां तक कि ऑन-स्क्रीन कीबोर्ड के जरिए टाइपिंग भी कर सकते हैं।
विंडोज आपरेटिंग सिस्टम में इस्तेमाल होने वाले सामान्य माउस में दो या तीन बटन और एक पहिया होता है। माउस के भीतर एक गोल गेंद (गोलक) होती है जो सतह पर माउस की गति के साथ-साथ घूमती है। जब हम माउस को चलाते हैं तो यह गेंद उसकी वर्तमान स्थिति के बारे में उसके भीतर मौजूद लोजिक बोर्ड को संकेत भेजती है। ये संकेत कंप्यूटर के प्रोसेसर तक पहुंचते हैं जो मॉनीटर की स्क्रीन पर तीर जैसे दिखने वाले संकेतक (एरो) की पोजीशन को नियंत्रित करता है। माउस के बटनों को दबाकर कंप्यूटर में निर्देश भी भेजे जाते हैं। एपल मैकिन्टोश आधारित कंप्यूटरों के माउस में एक ही बटन होता है।
माउस में इस्तेमाल होने वाली तकनीक और डिजाइन में लगातार सुधार हो रहे हैं। बार-बार गंदे हो जाने वाले गोलक के जरिए काम करने वाले माउस धीरे-धीरे बाजार से बाहर हो रहे हैं और इस्तेमाल में आसान ऑप्टिकल माउस लोकप्रिय हो रहे हैं। इनमें माउस की गति का पता लगाने के लिए प्रकाश किरणों और इन्फ्रारेड सेन्सर का प्रयोग होता है। ऑप्टिकल माउस में मौजूद प्रोसेसर चिप इन्फ्रारेड सेन्सरों से मिलने वाले संकेतों को डिजिटल डेटा में बदलकर कंप्यूटर को भेजती है जिनके आधार पर वह स्क्रीन पर संकेतक की स्थिति को नियंत्रित करता है। ऑप्टिकल माउस का विकास एजीलेंट टेक्नॉलॉजीज नामक कंपनी ने किया है। यह 1999 में पहली बार बाजार में आया।
अब वायरलैस माउस भी उपलब्ध हैं जो बिना किसी तार के कंप्यूटर के साथ संकेतों का आदान प्रदान करने में सक्षम हैं। वायरलैस माउस भी कई तरह के होते हैं। इनमें रेडियो फ्रिक्वेंसी आधारित माउस और ब्लू टूथ माउस प्रमुख हैं। गेमिंग और मल्टीमीडिया के लिए विशेष प्रकार के माउस आते हैं जिनमें अतिरिक्त बटन और क्षमताएं होती हैं। और तो और बायोमीट्रिक माउस में हमारी उंगलियों के निशान (फिंगरप्रिंट) लेने वाला यंत्र भी होता है। यह माउस सिर्फ उन्हीं व्यक्तियों को कंप्यूटर पर काम करने देता है जिनके फिंगरप्रिंट को वह पहचानता है।
आज माउस के बिना कंप्यूटर पर काम करना असंभव सा लगता है लेकिन कंप्यूटर को अपनी लंबी विकास यात्रा में माउस का साथ बहुत बाद में मिला। माउस से आम लोगों का परिचय 1981 में हुआ जब जीरोक्स स्टार 8010 कंप्यूटर के साथ पहली बार माउस बाजार में आया। हालांकि माउस को आम लोगों के बीच लोकप्रिय बनाने का श्रेय एपल कंपनी को जाता है जिसने 1984 में अपने मैकिन्टोश कंप्यूटर में माउस का प्रयोग शुरू किया। जरा सोचिए, उससे पहले लोग बिना माउस के कैसे काम चलाते होंगे? असल में, पहले कंप्यूटर स्क्रीन पर ग्राफिक्स (चित्र), बटन, मेन्यू आदि नहीं आते थे और उस पर अंकित पाठ सिर्फ दो दिशाओं में चलता था, बाएं से दाएं तथा ऊपर से नीचे। ऐसे में माउस की जरूरत ही महसूस नहीं होती थी।
माउस का आविष्कार स्टैनफोर्ड रिसर्च इन्स्टीट्यूट के डॉ. डगलस सी एन्जेलबर्ट ने 1963 में किया था। उनका माउस लकड़ी का बना था जिसमें धातु का एक पहिया और दो बटन थे। एन्जेलबर्ट ने जब 1967 में माउस के लिए पेटेंट की अर्जी दाखिल की तो उसका बड़ा जटिल सा नाम रखा था- ‘एक्स-वाई पोजीशन इन्डीकेटर फॉर ए डिस्प्ले सिस्टम‘। उन्हें 1970 में पेटेंट मिला। शुरू-शुरू में माउस का नाम रखा गया ‘बग‘ (कीड़ा)। आज कंप्यूटर की भाषा में प्रोग्रामिंग संबंधी गलतियों और वायरसों को ‘बग‘ कहा जाता है।
लेकिन माउस को जल्दी ही ‘बग‘ की बजाए ‘माउस‘ नाम मिल गया। वजह सीधी-सादी थी- माउस की तार किसी चूहे की पूंछ जैसी लगती थी और घुमाने पर वह किसी चूहे के चलने जैसा ही आभास देता था। यह नाम सबको पसंद आया और लोकप्रिय हो गया। आज सिर्फ अंग्रेजी ही नहीं, हिंदी, रूसी, स्पैनिश, जर्मन, इतालवी आदि भाषाओं में भी माउस को ‘माउस‘ ही कहा जाता है।
कीबोर्ड की ही तरह माउस भी एक इनपुट डिवाइस (आगम युक्ति) है जिसका काम कंप्यूटर के प्रोसेसर को संकेत भेजना है। माउस के जरिए हम कंप्यूटर की स्क्रीन पर करसर (टंकण बिंदु) की स्थिति को नियंत्रित कर सकते हैं, बटन और मेन्यू आदि का प्रयोग कर सकते हैं, चित्र बना सकते हैं, ऑडियो-वीडियो फाइलों को संपादित कर सकते हैं, कंप्यूटर गेम खेल सकते हैं और यहां तक कि ऑन-स्क्रीन कीबोर्ड के जरिए टाइपिंग भी कर सकते हैं।
विंडोज आपरेटिंग सिस्टम में इस्तेमाल होने वाले सामान्य माउस में दो या तीन बटन और एक पहिया होता है। माउस के भीतर एक गोल गेंद (गोलक) होती है जो सतह पर माउस की गति के साथ-साथ घूमती है। जब हम माउस को चलाते हैं तो यह गेंद उसकी वर्तमान स्थिति के बारे में उसके भीतर मौजूद लोजिक बोर्ड को संकेत भेजती है। ये संकेत कंप्यूटर के प्रोसेसर तक पहुंचते हैं जो मॉनीटर की स्क्रीन पर तीर जैसे दिखने वाले संकेतक (एरो) की पोजीशन को नियंत्रित करता है। माउस के बटनों को दबाकर कंप्यूटर में निर्देश भी भेजे जाते हैं। एपल मैकिन्टोश आधारित कंप्यूटरों के माउस में एक ही बटन होता है।
माउस में इस्तेमाल होने वाली तकनीक और डिजाइन में लगातार सुधार हो रहे हैं। बार-बार गंदे हो जाने वाले गोलक के जरिए काम करने वाले माउस धीरे-धीरे बाजार से बाहर हो रहे हैं और इस्तेमाल में आसान ऑप्टिकल माउस लोकप्रिय हो रहे हैं। इनमें माउस की गति का पता लगाने के लिए प्रकाश किरणों और इन्फ्रारेड सेन्सर का प्रयोग होता है। ऑप्टिकल माउस में मौजूद प्रोसेसर चिप इन्फ्रारेड सेन्सरों से मिलने वाले संकेतों को डिजिटल डेटा में बदलकर कंप्यूटर को भेजती है जिनके आधार पर वह स्क्रीन पर संकेतक की स्थिति को नियंत्रित करता है। ऑप्टिकल माउस का विकास एजीलेंट टेक्नॉलॉजीज नामक कंपनी ने किया है। यह 1999 में पहली बार बाजार में आया।
अब वायरलैस माउस भी उपलब्ध हैं जो बिना किसी तार के कंप्यूटर के साथ संकेतों का आदान प्रदान करने में सक्षम हैं। वायरलैस माउस भी कई तरह के होते हैं। इनमें रेडियो फ्रिक्वेंसी आधारित माउस और ब्लू टूथ माउस प्रमुख हैं। गेमिंग और मल्टीमीडिया के लिए विशेष प्रकार के माउस आते हैं जिनमें अतिरिक्त बटन और क्षमताएं होती हैं। और तो और बायोमीट्रिक माउस में हमारी उंगलियों के निशान (फिंगरप्रिंट) लेने वाला यंत्र भी होता है। यह माउस सिर्फ उन्हीं व्यक्तियों को कंप्यूटर पर काम करने देता है जिनके फिंगरप्रिंट को वह पहचानता है।
-माउस के कार्य-
CLICK (क्लिक)
माउस के बटन को एक बार दबाकर छोड़ना।
माउस के बटन को एक बार दबाकर छोड़ना।
DOUBLE CLICK (डबल क्लिक)
माउस के बाएं वाले बटन को दो बार जल्दी जल्दी दबाना।
DRAG (ड्रैग)
जब माउस के बायें बटन को दबाकर एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाया जाता है। इसका प्रयोग आइकन , चित्र आदि को एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाने के लिए किया जाता है।
SELECT (सेलेक्ट)
जब माउस के द्वारा क्लिक करने पर किसी आइकन या अक्षर के रंग में परिवर्तन हो तो उसे सेलेक्ट कहा जाता है।
जब माउस के बायें बटन को दबाकर एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाया जाता है। इसका प्रयोग आइकन , चित्र आदि को एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाने के लिए किया जाता है।
SELECT (सेलेक्ट)
जब माउस के द्वारा क्लिक करने पर किसी आइकन या अक्षर के रंग में परिवर्तन हो तो उसे सेलेक्ट कहा जाता है।
डगलस एंजेलबर्ट ने 1960 में जब कंप्यूटर माउस का आविष्कार किया था, तब उन्होंने उसे लकड़ी से बनाया था। एंजेलबर्ट का पिछले दिनों निधन हो गया, लेकिन, अब तक के सफर में माउस ने तमाम पड़ाव पार कर लिए हैं। यह अब वायरलेस भी हो गया है। आइए जानें कंप्यूटर माउस के कुछ दिलचस्प तथ्य..
-जिस समय 1960 में एंजेलबर्ट ने माउस का अविष्कार किया था, उस समय बड़े-बड़े कमरों के बराबर कंप्यूटर होते थे, इन मशीनों में पंच कार्ड द्वारा डाटा भरे जाते थे।
-1963 में बिल इंग्लिश ने डगलस के स्केचेज के आधार पर लकड़ी का माउस बनाया, जिसे चलाने के लिए दो पहियों का इस्तेमाल किया। ' डगलस ने 1968 में सैन फ्रांसिसको के कंप्यूटर कॉन्फ्रेंस में माउस का पहला डिमॉन्सट्रेशन दिया।
-जैक हॉली और बिल इंग्लिश डगलस के इस काम से बहुत प्रभावित थे। उन्होंने उसी के आधार पर पहला डिजिटल माउस 1972 में जीरॉक्स पार्क डिजाइन किया। इस माउस में एनलॉग से डिजिटल में कन्वर्ट करने की जरूरत नहीं होती थी, यह सीधे इन्फॉर्मेशन कंप्यूटर को भेजता था। इसी माउस में पहली बार मेटल की माउस बॉल लगाई गई।
-1970 में डगलस एंजेलबर्ट ने माउस का पेटेंट कराया था, उनके नाम माउस के अलावा 45 और आविष्कारों का पेटेंट है।
-शुरुआत में माउस को 'बग' नाम से जाना जाता था, लेकिन इसे माउस इसलिए कहा गया, क्योंकि स्टैंफोर्ड रिसर्च इंस्टीट्यूट में विकसित किए गए माउस का आकार बिल्कुल चूहे की तरह था।
-डगलस के प्रदर्शन के करीब बीस साल बाद 1981 में माउस इस्तेमाल के लिए बाजार में आया, जिसमें बॉल और दो बटन होते थे। जेरोक्स स्टार 8010 पर्सनल कंप्यूटर के साथ इसे बेचा गया। उस समय इस कंप्यूटर की कीमत थी 16000 डॉलर।
-माउस की बॉल का अविष्कार बिल इंग्लिश ने 1970 में किया था।
-माइक्रोसॉफ्ट ने पहली बार 1983 में माउस की बिक्री शुरू की।
-1991 में लॉजिटेक ने दुनिया का पहला वायरलेस माउस पेश किया, जिसमें रेडियो फ्रीक्वेंसी ट्रांसमिशन का इस्तेमाल किया गया।
- 2004 में लॉजिटेक कंपनी ने पहला लेजर माउस बाजार में उतारा था। इस माउस की स्पीड ऑप्टिकल माउस से 20 गुना ज्यादा थी।
-माउस की स्पीड को मिकी यूनिट में गिना जाता है। एक मिकी एक इंच का 200वां हिस्सा होता है।
-इसे इंग्लिश, स्पेनिश, इटालियन, जर्मन, फ्रेंच और रूसी सहित अनेक भाषाओं में माउस के नाम से ही जाना जाता है।
कौन थे डगलस एंजेलबर्ट
डगलस एंजेलबर्ट (डग) सिर्फ माउस के ही जन्मदाता नहीं, बल्कि ई-मेल, वर्ड प्रोसेसिंग और टेलिकॉन्फ्रेंसिंग पर भी शुरुआती काम किया था। उनका जन्म 30 जनवरी 1925 को ओरेगन के पास पोर्टलैंड में हुआ था। उनके पिता रेडियो मैकैनिक और मां गृहिणी थीं। उन्होंने इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग की डिग्री लेने के बाद दूसरे विश्वयुद्ध में राडार टेक्नीशियन के रूप में काम किया। इसके बाद वे नासा की संस्था नाका में इलेक्ट्रिकल इंजीनियर के पद पर काम करने लगे। जल्द ही वह नौकरी छोड़कर डॉक्टरेट की उपाधि के लिए बर्कले स्थित कैलीफोर्निया विश्वविद्यालय चले गए। बाद में उन्होंने ऑग्मेंटेशन शोध केन्द्र के नाम से अपनी प्रयोगशाला स्थापित की। उनकी प्रयोगशाला ने एआरपीएनेट के विकास में सहयोग किया़, जिसने आगे चलकर इंटरनेट का रूप लिया। उन्हें 1997 में लेमेलसन-एमआईटी पुरस्कार मिला और साल 2000 में पर्सनल कम्प्यूटिंग की बुनियाद तैयार करने के लिए नेशनल मेडल फॉर टेक्नालॉजी से नवाजा गया।
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